Wednesday, December 13, 2017

What is Domain Name System definition DNS in hindi | क्या है?

Domain Name System क्या होता है? DNS definition : 
Domain Name System को short मे DNS भी कहते है |DNS का काम Domain Name को IP Address मे convert करना होता है | जब हम किसी भी domain name को web browser मे टाइप करते है तो ये DNS उसको IP Address मे कन्वर्ट करता है | इसी प्रकार किसी भी Network मे किसी भी Computer एवं host name को भी ये IP Address मे कन्वर्ट करता है| यह इसलिए होता है क्योकि हम IP Address की तुलना मे Alphanumeric  Name easily याद रख सकते है |एक उदहारण की लिए – जब हम www.example.com को browser मे टाइप करते है तो DNS इसको 198.15.45.18 मे या इसी प्रकार की किसी valid IP Address मे चेंज केर देता है| अब आप खुद देखिए हमको WWW.example.com याद करना कितना आसान है जबकि IP address याद करना कितना मुश्किल|
Domain Name System
 

अब हम जानते है की Public IP Address के केस मे अनगिनत DNS और IP Address हो सकते है तो केवल एक सर्वर सभी की information को save करके नहीं रख सकता, इसी वजह से जब query एक सर्वर के पास आती है एवं उस सर्वर को IP Address नहीं पता होता या वो उस query को resolve नहीं कर पता तो वो query को उससे connected दूसरे सर्वर के पास भेज देता है| यह Pass on तब तक चलता है जब तक query resolve नहीं हो जाती एवं IP Address नहीं मिल जाता|
DNS implements a distributed database to store this name and address information for all public hosts on the Internet.
मुझे उम्मीद है आपको यह पोस्ट अच्छा  लगा होगा तो आज हमने जाना डोमेन name सिस्टम क्या होता है | प्लीज like एंड शेयर माय पोस्ट | धन्यबाद  
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Tuesday, December 12, 2017

What is Network bridge in networking in hindi | Network bridge kya hai

 Network Bridge  क्या होता है :

एक network bridge software or hardware हो सकता है जो की दो या ज्यादा नेटवर्क्स को connects करता है जिससे की वो आपस मे communicate कर सक | Home or small office networks मे दो separate computer networks होने पर generally bridge use करते है यह ब्रिज उनको आपस मे information exchange करने मे या नेटवर्क के कम्प्यूटर्स को आपस मे फाइल्स शेयर करने मे हेल्प करता है | Bridge, OSI मॉडल मे data link layer (Layer 2) पर operate करता है |
Network Bridge
 


Here’s an example. मान लेते है की आपके पास दो नेटवर्क है एक नेटवर्क cables से कनेक्टेड है एवं दूसरा नेटवर्क wireless टेक्नोलॉजी से connected है | wired computers केवल wired computers से एवं wireless computers केवल wireless computers से communicate कर सकते है यहाँ पर एक network ब्रिज का use करते हुए दो अलग अलग नेटवर्क को कनेक्ट किया जा सकता है जिससे की दोनों networks आपस मे communicate एवं file sharing कर सके |
Bridge का काम है data packets के destination को examine करना (one at a टाइम) एवं decide करना की packets को Ethernet सेगमेंट की दूसरी side मे पास करना है या नहीं |Bridges भी repeaters and hubs की तरह data को every नोड मे broadcast करता है लेकिन bridge, media access control (MAC) address table को maintain भी करता है जो की data packet के फ़ास्ट destination decide करने मे हेल्प करता है | The result is a faster, quieter network with less collisions. यह समझना जरुरी है की bridge ना ही एक router है ना ही एक fire-वाल | अगर simple term मे बोलेंगे तो bridge behaves like a network switch (i.e. Layer 2 Switch) |
दोस्तो मुझे उम्मीद है आपको यह पोस्ट अच्छा लगा होगा तो हमने जाना network bridge क्या होता networking के अन्दर || प्लीज like एंड शेयर माय पोस्ट | धन्यबाद
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लोग मोबाइल आईएमईआई नंबर kyu बदलते हैं ?

आज हम इस पोस्ट में जांएगे लोग IMEI नंबर चेंज क्यों  करते है ? और इसका उपयोग इसलिए होता है | तो चलिए जानते है -
IMEI नंबर क्यों चेंज करे : बहुत बार आपको देखने मे आया होगा की लोग IMEI number change करने के लिए बोलते है या इस बारे मे बात करते है । क्या आपने सोचा है की लोग अपने mobile का आईएमईआई number क्यों चेंज करते है और क्या आईएमईआई नंबर चेंज करना लीगल है। इसमें सबसे पहले तो ये बताना जरुरी है की IMEI number change करना बहुत सारी countries के साथ साथ India मे भी illegal है इसलिए आप IMEI number change न करे। अगर IMEI number change करना लीगल नहीं है तो फिर लोग अपने मोबाइल का आईएमईआई नंबर क्यों चेंज करते है।

IMEI चेंज कंरने के पीछे तीन कारण हो सकते है –
  1. मोबाइल एक्सपर्ट्स किसी रिसर्च और टेस्टिंग करने के लिए IMEI number change करते है।
  2. IMEI नंबर चेंज करने का दूसरा कारन मोबाइल चोरी करने के बाद उसको reuse करना हो सकता है।
  3. तीसरा कारण आंतकवादी या दूसरी क्रिमिनल activity मे इन्वॉल्व होने वाले लोग IMEI नंबर को चेंज करते रहते है जिससे की उनकी लोकेशन एंड उनका नंबर ट्रेस नहीं हो पाए|
 Disadvantage of changing IMEI नंबर : IMEI नंबर change करने के कुछ नुकसान है –
  1. पहला नुक्सान तो ये illegal है और एक बार आपने इसको change कर लिया तो आप किसी SIM के साथ device को legally use नहीं कर सकते या इसको बेचते है तो ये legal नहीं है ।
  2. IMEI नंबर डिवाइस पर hard-coded होते है इसलिए IMEI नंबर चेंज करने से आपकी डिवाइस डैमेज हो सकती है।
  3. IMEI number change करने के बाद आपके मोबाइल की warranty खत्म हो जाती है। किसी भी तरह के technical issue आने पर मोबाइल company support नहीं देगी ।
  4. आईएमईआई नंबर चेंज करने के बाद अगर आपकी device खो जाती है तो आप trace करने के लिए legal action नहीं ले सकते ।
 मुझे उम्मीद है आपको यह पोस्ट अच्छा लगा होगा | तो आज हमने जाना IMEI नंबर लोग चेंज किस पर्पस के लिए करते है | प्लेस like  माय पोस्ट | धन्यबाद 
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Sunday, December 10, 2017

What is internet in hindi | History इंटरनेट का इतिहास

इन्टरनेट क्या है :  
Internet जिसको की short मे net भी कहा जाता है अनगिनत एवं आपस मे connected computer network का समूह है जिसकी help से आप एक computer से दूसरे computer पर सभी तरह की information को exchange कर सकते है | सभी computers को internet से connect करने के लिए बहुत सारी organizations एक managed way मे TCP/IP एवं other technologies को use करते हुए servers, switches, routers, fiber cables आदि की help से internet को globally connect करती है | इंटरनेट को कोई एक company own नहीं करती लेकिन world की बहुत सारी organizations आपस मे collaborate करके इसकी proper functioning and development को ensure करती है | High-speed fiber-optic cables इंटरनेट का backbones है and esko world के अलग अलग countries मे telephone companies own करती है ये fiber cables Internet का सबसे बड़ा communication medium है जिस पर world मे internet का data travels करता है |
इस प्रकार इंटरनेट के लिए हम कह सकते है की यह हज़ारो small networks का group है जिसमे बहुत सारे छोटे बड़े private, public, business, education या फिर government network आपस मे wired or wireless medium से connect होकर data exchange करते है |


इंटरनेट हिस्ट्री – 
1950 का time था जब electronic computers का development start हुआ था एवं digital communication के बारे मे सोचा जाने लगा था | United States की top universities को लगा की उनके पास कोई ऐसा tool होना चाहिए जिससे की information sharing and accessing मे ज्यादा time न लगे and easy भी हो जिससे की वो research data को time waste किये बिना transfer कर पाए | उन्ही दिनों मे US defense भी digital network and network data system पर research कर रही थी | इसी सोच के साथ US Department of Defense ने Late 1950 मे ARPANET एवं packet network systems के development के लिए US की universities को contact किया और इसके लिए research करने के लिए कहा | Uske baad Early 1960 मे packet switching पर research start हुई एवं late 1960 मे अलग अलग protocol को use करते hue packet switched networks such as the ARPANET, CYCLADES, the Merit Network, NPL network, Tymnet, and Telenet, develop किये गए |
                                                                                 
                                    इसमें ARPANET project मे inter-networking protocols को डेवलप किया गया जिसमे बहुत सारे separate networks को single network of networks मे join किया जा सकता था | ARPANET को two network nodes से develop करना start किया गया जो की दो अलग अलग location से connected थी | उसके बाद ARPANET ने 1971 के end तक fifteen sites आपस मे connected करने मे सफलता प्राप्त कर ली थी | यहाँ पर expert को समझ आ चुका था की इस interconnection tool मे कितना potential एवं future है | जब 1981 मे National Science Foundation (NSF) ने Computer Science Network (CSNET) को fund किया तो ARPANET को और ज्यादा एक्सपेंड किया गया और जब 1982 मे Internet Protocol Suite (TCP/IP) standardized अपनाया गया तो फिर worldwide सभी network को आपस मे connect किया जाने लगा | फिर 1984 मे domain name का concept start हुआ तो यह internet की क्रांति की शुरुआत था जो की World Wide Web के existence के बाद आगे बढ़ता गया |
दोस्तों मुझे उम्मीद है कि आपको यह पोस्ट अच्छा लगा होगा तो आज हमने जाना इंटरनेट क्या है और उसका क्या इतिहास है | प्लीज like एंड शेयर माय पोस्ट || धन्यबाद
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Friday, December 8, 2017

What is VPN in Hindi ?

हेलो फ्रेंड्स अमित ,आज के इस पोस्ट में हम VPN के बारे में जानेंगे की VPN क्या होता है ? VPN को कैसे यूज़ किया जाता है ? आज का पोस्ट basic hacking का पार्ट है ,आज ऑनलाइन दुनिआ में VPN का इस्तेमाल बहुत  ज्यादा हो रहा तो इसलिए इसकी जानकारी होना जरूरी है। हम इस पोस्ट में VPN के बारे में detail में जानेंगे।

VPN क्या है ?

VPN का फुल फॉर्म होता है virtual private network . VPN का main use Banks ,बड़ी कंपनी और सभी तरह के gov sector में किया जाता है। वैसे आजकल बहुत से लोग VPN use करते हैं लेकिन उन्हें ये नहीं पता होता की इसके फायदे और नुकसान क्या है। तो चलिए जानते हैं VPN के बारे में।


जब हम internet से कनेक्ट होते हैं तब हमारा जो भी ISP (internet service provider )होता है वो हमे उसी country का IP दे देता है। अब जब हम इस IP से कनेक्ट होकर online जो भी काम करेंगे उसका पता ISP/Government कर सकती है, मतलब वो हमे trace कर सकती है। ऐसे हम हम अपनी प्राइवेसी को सेफ रखने के लिए भी VPN का इस्तेमाल करते हैं। जब हम VPN से कनेक्ट होते हैं तब हमे एक नया IP मिलता है और हमरी रियल IP hide हो जाती है।


VPN कैसे काम करता है ?

दोस्तों ,अगर हम VPN की बात करें तो VPN एक tunnel की तरह काम करता है जिससे गुजरने वाले data पूरी तरह से encrypted होते हैं। हम किसी वेबसाइट को ओपन करते है या फिर इनफार्मेशन शेयर करते हैं तो हमारा ISP या फिर कोई हैकर चाहे तो sniffing कर सकता है मतलब मेरे और वेबसाइट के बीच share होने वाले डाटा तो चुरा सकता है। ठीक इसी तरह जब बैंक internet से कनेक्ट होकर एक दूसरे को डाटा ट्रांसफर करते है भी उन्हें sniffing का खतरा बना रहता है। तो ऐसे condition में VPN काफी अच्छा ऑप्शन है ,जैसे ही VPN connect होता है तो एक नई IP मिलती है और user और website के बीच एक tunnel create हो जाता है। अब जो भी data share होता है वो उसी tunnel से होकर गुज़रता है ,और data encrypted हो जाता है। तो इस तरह VPN का यूज़ sniffing/hacking से बचने के लिए किया जाता है। 

""हम आने वाले पोस्ट में जानेंगे की sniffing कैसे की जाती है। हम एक open wifi network create करेंगे और जब उससे users जुड़ जायेंगे तो हम उन्हें sniff करके ये देख पाएंगे की वो कौन से वेबसाइट visit कर रहे हैं और साथ ही अगर वो कुछ इनफार्मेशन जैसे username ,email id etc ऑनलाइन fill करेंगे तो वो भी जान पाएंगे। Network Sniffing एक important और मज़ेदार चैप्टर है जिसे हम आगे detail में जानेंगे। "" 
VPN use करने के फ़ायदे और नुकसान -

VPN यूज़ करने के फायदे और नुकसान दोनों ही है ,अगर हम फायदे की बात करें तो हमारी identity छिपी रहती है साथ ही हमारा डाटा encrypted होता जिससे प्राइवेसी safe रहती है। साथ ही ,अगर कोई website /video/content किसी specific country में block हो तो VPN का इस्तेमाल करके उसे access किया जा सकता है। जैसे अगर कोई video /website Indian gov. ने बैन कर रखी है लेकिन बाकि दूसरी country उसे access कर पा रहे हैं तो हम VPN की मदद से दूसरी country का IP से कनेक्ट होकर use कर पाएंगे। 
अगर नुकसान की बात करें तो हम जिस कंपनी से VPN लेते हैं वो चाहे तो पर्सनल इनफार्मेशन share कर सकता है। आज market में बहोत से free VPN available हैं , लेकिन इनका कोई भरोसा नहीं है। इसलिए हमे एक trusted VPN का ही इस्तेमाल करना चाहिए। 

VPN कैसे use करें ?

आज ऑनलाइन mobile और pc दोनों के लिए ही बहुत से VPN available हैं। कुछ free है तो कुछ paid . paid वाले VPN में आपको अनलिमिटेड बैंडविड्थ मिलता है और ज्यादा speed भी। 
इन्हे use करना बहुत आसान है ,बस आपको इन्हे Download करना है open करना है। ओपन करते ही आपको बहुत से country का option मिलता है ,इनमे से किसी को भी select करना है और VPN कनेक्ट हो जाता है। 
अगर फ्री VPN की बात करें तो मोबाइल के लिए आप Turbo VPN को play store से download करके use कर सकते हैं।  
 

मुझे उम्मीद आपको मेरा यह पोस्ट अच्छा लगा होगा तो आज हमने जाना VPN क्या होता है और उसके उसे क्या है इंटरनेट की दुनियां में दोस्तों प्लीज like एंड शेयर माय पोस्ट | धन्यबाद 
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हैकरों का ब्राउज़र Tor Browser क्या है ? tor browser in Hindi

हेलो दोस्तों में अमित इस पोस्ट में आज हम बात कर रहे हैं और Tor Browser की। जी हाँ हैकरों का ब्राउज़र , और हम ऐसा क्यों कह रहे हैं जानेंगे इस पोस्ट में। ये Tor Browser क्या होता है ? क्या हमें Tor Browser यूज़ करना चाहिए ? इसके क्या फायदे एवं नुकसान है ? Tor Browser का फुल फॉर्म होता है और the onion router । जैसे एक Onion(प्याज़) मे बहुत सारी layers मिलती है बिलकुल वैसे ही Tor Browser भी उसी तरह काम करता है, यानी onion के layers के जैसा ही ये IP की लेयर बनाता है जिससे आपकी IP hide हो जाती है। 

अपनी पहचान छुपाने के लिए सबसे ज्यादा यूज होने वाला Browser है । इस ब्राउजर का इस्तेमाल दुनिया के कुछ देशों को छोड़कर बाकी सभी जगह होता है और यह इंडिया में पूरी तरह लीगल है , मतलब इसका इस्तेमाल बिना किसी ऱोक टोक के कर सकते हैं। लेकिन इस ब्राउज़र में ऐसा क्या खास है क्या वजह है जिससे इस में रोक लगाई जा सकती है ? आखिर यह इतना फेमस क्यों है ? तो चलिए जानते हैं इसके बारे में थोड़ा विस्तार से या कैसे काम करता है।
 
Tor Browser यूज़ क्यों होता है ?
दोस्तों tor का इस्तेमाल वही लोग करते हैं जिन्हे अपनी ऑनलाइन पहचान छिपाने की जरूरत पड़ती है , या फिर वैसे लोग जो अपनी privacy को लेकर जयादा फ़िक्र करते हैं। और हाँ , आज की इंटरनेट दुनिआ में जहाँ ऑनलाइन क्राइम बढ़ रहे है , अपनी पहचान छिपाना शायद जरूरी भी है। क्यों की बहुत वेबसाइट आपसे बिना परमिशन मांगे आपके व्यक्तिगत जानकारियाँ जमा करती रहती हैं। 

आप ऑनलाइन कुछ भी करें आपकी प्राइवेसी सेव रहती है। डीप वेब या डार्क वेब को यूज़ या विजिट करने में भी इसी Browser का इस्तेमाल होता है। 

Tor Browser कैसे काम करता है ?
Tor Browser दूसरे किसी ब्राउज़र जैसे firefox/chrome से अलग है। इसका मुख्य काम होता है यूजर के पर्सनल IP को हाइड करना जिससे कि यूजर क्या कर रहा है यह ट्रैक न हो सके। जैसा कि आप जानते हैं IP का मतलब इंटरनेट प्रोटोकॉल होता है, जिससे यह पता लगाया जा सकता है कि आप कौन सा लैपटॉप मोबाइल यूज कर रहे है, आपकी OS कौन सी है, आपका लोकेशन क्या है। और इसी वजह हैकरों लिए ये सबसे अच्छा ब्राउज़र माना जाता है। 
यह आपकी IP को लगातार switch करता रहता है , और ip के आगे एक चेन सा बना देता है जिससे आपको कभी usa uk जैसे country का IP मिलता रहता है। और आप का वास्तविक IP दूसरे IP से ढका होता है जिससे आपको ट्रेस करना बहुत मुश्किल हो जाता है।

क्या इसे यूज करना चाहिए ?
हाँ , मै recommend करता हूँ , लेकिन दोस्तों यह डिपेंड करता है आपके ऊपर कि आप ऑनलाइन क्या करते हैं। अगर आप कुछ गलत काम करते हैं (जो कि नहीं करना चाहिए) जैसे है हैकिंग ,तो आपको अपनी पहचान छुपानी पड़ती है या फिर अगर आप चाहते हैं कि मेरी प्राइवेसी छिपी रहे तो भी आप इसका यूज कर सकते हैं। 
Tor Browser को कैसे यूज़ करें ?
इसे इस्तेमाल करने के लिए सबसे आप पहले अपने ब्राउज़र पे जाएँ और search करें tor डाउनलोड।
 

अब आपको जो सबसे पहले वेबसाइट मिलेगा उससे डाउनलोड कर लें। अब आप इसे इनस्टॉल करके डायरेक्ट ही यूज़ कर सकते हैं। 

नोटTor को ओपन करने के बाद इसके बॉक्साइट को मैक्सिमाइज़ ना करें मतलब आप इसके विंडो साइज को बड़ा ना करें क्योंकि इससे आपकी प्राइवेसी कम रह जाती है।
मुझे उम्मीद है कि आपको यह पोस्ट अच्छा लगा होगा तो आज हमने जाना Tor ब्राउज़र क्या होता है | 
प्लीज like एंड शेयर पोस्ट | धन्यबाद

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What is Dos attack and DDOS attack in Hindi ?

DOS attack क्या होता  है -
Dos का फुल फॉर्म होता है "denial of service" ,अब इसका नाम ही बहुत कुछ बता देता है मतलब किसी सर्विस को देने से इंकार करना। तो ये सर्विस क्या होती है क्यों इंकार किया जाता है जानते हैं पुरे विस्तार से। 
                             Dos Attack में हैकर किसी website/network को टारगेट बनाता है और ,इतनी ज्यादा ट्रैफिक generate करता है की वेबसाइट/नेटवर्क उस ट्रैफिक को हैंडल नहीं कर पता है और आख़िरकार बंद हो जाता है। ऐसे में उस वेबसाइट के जितने भी रियल user होते हैं वे भी वेबसाइट पे available डाटा को access नहीं कर पाते हैं। 

                                    फ्रेंड्स , हर वेबसाइट या सर्वर का एक लिमिट होता है की वो एक टाइम में ज्यादा से ज्यादा कितने users को हैंडल कर सकता है ,लेकिन ये अटैक ऐसा होता है जिसमे लगातार बहुत ज्यादा ट्रैफिक generate होती है और जिसके वजह से सर्वर स्लो हो जाता है और कई बार क्रैश भी। 

अगर हम वेबसाइट/सर्वर की बात करें तो आपने कई बार देखा होगा ही कुछ websites जिनपे बहुत ज्यादा ट्रैफिक आती है बहुत ही स्लो हो जाता है। जैसे की , websites जिनपे किसी एग्जाम का रिजल्ट आना होता है तो उनपे एक ही टाइम में बहुत सारे लोग एक साथ विजिट करते हैं और वेबसाइट थोड़ा स्लो काम करता है।माना ये जो वेबसाइट है उसकी लिमिट है की वो per second 1000 लोगों को हैंडल कर सकता है ,लेकिन अगर इस वेबसाइट पे Dos Attack हो जाये मतलब की इस वेबसाइट पे fake traffc आनी शुरू हो जाये तो per second user बढ़ जायेंगे और आख़िरकार सर्वर स्लो होते होते बंद भी हो सकता है , तो ऐसे condition में जो real विजिटर है वो अपना रिजल्ट नहीं देख पाएंगे।

तो दोस्तों हम इसे ही Dos Attack कहते हैं जिसमे fake traffc भेजकर सर्वर को इतना busy कर दिया जाता है की वो स्लो होते होते बंद हो जाता है और उस वेबसाइट के रियल users डाटा एक्सेस नहीं कर पाते हैं। 

DDOS attack  क्या होता है- 
DDOS का फुल फॉर्म होता है Distributed denial of service . ये भी DOS अटैक ही है लेकिन ये डिस्ट्रिब्यूटेड अटैक होता है। तो दोस्तों ये थोड़ा अलग है Dos attack से ,क्यूंकि इसमें कोई एक host/system अकेले ही अटैक नहीं करता है है बल्कि बहुत से सिस्टम/कंप्यूटर एक साथ अटैक करते हैं। इस अटैक में सिर्फ एक ही कंप्यूटर यूज़ नहीं होता है। DDOS काफी सोचा समझा और खतरनाक अटैक माना जाता है। 
                                       इस अटैक में हैकर दुनिआ भर के बहुत सारे system को अपने virus से affect करता है और botnet तैयार करता है। या फिर हम ये कह सकते हैं की ये कंप्यूटर जिनमे virus आ जाता है वो उस हैकर के Robot बन जाते हैं और वही करते हैं जो हैकर कहता है। तो हैकर जब botnet बना लेता है तब वो इन systems का यूज़ करके एक साथ किसी टारगेट वेबसाइट पे DDos attack करता है। 
                                           जैसा की हमने पहले भी जाना की सर्वर एक टाइम में एक लिमिट तक ही ट्रैफिक हैंडल कर सकता है, लेकिन DDOS ATTACK में हैकर अपने रोबोट्स को आर्डर देता है और बहुत सारा fake ट्रैफिक generate होता है जिसके वजह से वह वेबसाइट down या पूरी तरह बंद हो जाती है।  


 मुझे उम्मीद है कि आपको मेरा यहाँ पोस्ट अच्छा लगा होगा तो आज हमने जाना dos attack और ddos attack क्या होता है | 
प्लीज like एंड शेयर माय पोस्ट | धन्यबाद



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